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चमोली के ग्लेशियर घटना के बारे में सही जानकारी
चमोली में ग्लेशियर के टूटने से कोनसी परेशानी आई है : वह बहुत ही दुखद थी। इसीलिए इस पोस्ट में हम यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि आखिर किस वजह से टूटा चमोली का ग्लेशियर और साथ ही हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट किस तरह से वहां के स्थानीय लोगों के लिए मुसीबत बना हुआ है।चलिए जानते हैं इस खास वजह को क्योंकि यह विषय बहुत ही खास रहेगा।और यह कहीं ना कहीं उत्तराखंड के लोगों के साथ ही साथ पूरे भारत के लोगों के लिए बहुत ही संवेदनशील होता है। आप देख रहे हैं दोस्तों हम आपको घुमा फिराकर नही कहेंगे हम सीधे और स्पष्ट शब्दों में बताएंगे।
बारिश के साथ भारी बर्फबारी होना
वरहाल आपदा की असली वजह क्या है : इसका खुलासा तो वैज्ञानिकों की टीम द्वारा ही किया जाएगा और वह भी अध्ययन के बाद वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जूलॉजिकल के वैज्ञानिकों की माने तो उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में उत्तरकाशी स्थित यमुनोत्री गंगोत्री डोकरी यानी और बंदरपूंछ ग्लेशियर के अलावा चमोली जिले द्रोणा गिरी, और बद्रीनाथ और सतोपंत और भागीरथी ग्लेशियर स्थित है। इसके अलावा रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ धाम के पीछे स्थित चोरा , बाड़ी ग्लेशियर खतलिंग ग्लेशियर स्थित हैकौन – कौन से ग्लेशियर मुख्य है
उत्तराखंड के अल्पाइन : वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जूलॉजिकल के वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तराखंड में ज्यादातर ग्लेशियर अल्पाइन ग्लेशियर है अल्पाइन आकार के पर्वतों पर बने होने की वजह से इन्हें अल्पाइन ग्लेशियर की श्रेणी में रखा गया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अल्पाइन स्नो एवलॉन्ज टूटने के लिहाज से बेहद खतरनाक होती है क्योंकि यहां पर जैसे कि आप जानते हैं की यहां हिम – संख्लन तो होता ही रहता है। साथ ही साथ भूषण और ठंड के मौसम में पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाली बारिश और बर्फबारी के चलते अल्पाइन ग्लेशियर कई लाख टन बर्फ का भार पड़ जाता है। जिस वजह से ग्लेशियर के खिसकने और टूटने का खतरा बढ़ जाता है।sponsored by taboola ad
